Tuesday, January 9, 2018

ज्ञानेश्वरी अध्याय १६ वा, ओव्या १८६ ते २१६ संत ज्ञानेश्वर,



ज्ञानेश्वरी / अध्याय सोळावा / संत ज्ञानेश्वर
ओव्या १८६  ते २१६
by dr. vikrant tikone


तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहो नातिमानिता।
भवन्ति संपदं दैवीमभिजातस्य भारत ॥ ३॥


आतां ईश्वरप्राप्तीलागीं | प्रवर्ततां ज्ञानमार्गीं |
धिंवसेयाचि आंगी | उणीव नोहे ॥ १८६ ॥

धिंवसेयाचि= धैर्याच्या (इच्छा)

वोखटें मरणा{}सें | तेंही आलें अग्निप्रवेशें |
परी प्राणेश्वरोद्देशें | न गणीचि सती ॥ १८७ ॥

वोखटें=वाईट

तैसें आत्मनाथाचिया आधी | लाऊनि विषयविषाची बाधी |
धांवों आवडे पाणधी | शून्याचिये ॥ १८८ ॥

आधी =चिंतेने (ओढीने)    लाऊनि =नाहीशी करून
पाणधी=(काटेरी)पाय वाट

न ठाके निषेधु आड | न पडे विधीची भीड |
नुपजेचि जीवीं कोड | महासिद्धीचें ॥ १८९ ॥

ऐसें ईश्वराकडे निज | धांवे आपसया सहज |
तया नांव तेज | आध्यात्मिक तें ॥ १९० ॥

आतां सर्व=ही साहातिया गरिमा | गर्वा न ये तेचि क्षमा |
जैसें देह वाहोनि रोमा | वाहणें नेणें ॥ १९१ ॥

गरिमा=मोठेपण प्रतिष्ठा

आणि मातलिया इंद्रियांचे वेग | कां प्राचीनें खवळले रोग |
अथवा योगवियोग | प्रियाप्रियांचे ॥ १९२ ॥

प्राचीनें=प्रारब्ध

यया आघवियांचाचि थोरु | एके वेळे आलिया पूरु |
तरी अगस्त्य कां होऊनि धीरु | उभा ठाके ॥ १९३ ॥
 
आकाशीं धूमाची रेखा | उठिली बहुवा आगळिका |
ते गिळी येकी झुळुका | वारा जेवीं ॥ १९४ ॥

तैसें अधिभूताधिदैवां | अध्यात्मादि उपद्रवां |
पातलेयां पांडवा | गिळुनि घाली ॥ १९५ ॥

ऐसें चित्तक्षोभाच्या अवसरीं | उचलूनि धैर्या जें चांगावें करी |
धृति म्हणिपे अवधारीं | तियेतें गा ॥ १९६ ॥

आतां निर्वाळूनि कनकें | भरिला गांगें पीयूखें |
तया कलशाचियासारिखें | शौच असें ॥ १९७ ॥

जे आंगीं निष्काम आचारु | जीवीं विवेकु साचारु |
तो सबाह्य घडला आकारु | शुचित्वाचाचि ॥ १९८ ॥

कां फेडित पाप ताप | पोखीत तीरींचे पादप |
समुद्रा जाय आप | गंगेचें जैसें ॥ १९९ ॥

पादप=वृक्ष

कां जगाचें आंध्य फेडितु | श्रियेचीं राउळें उघडितु |
निघे जैसा भास्वतु | प्रदक्षिणे ॥ २०० ॥

श्रियेचीं रावुळे =लक्ष्मीची निवास स्थान असलेली कमळे
 भास्वतु=सूर्य

तैसीं बांधिलीं सोडिता | बुडालीं काढिता |
सांकडी फेडिता | आर्तांचिया ॥ २०१ ॥
 
किंबहुना दिवसराती | पुढिलांचें सुख उन्नति |
आणित आणित स्वार्थीं | प्रवेशिजे ॥ २०२ ॥

स्वार्थीं=आत्मतत्वी स्व अर्थ

वांचूनि आपुलिया काजालागीं | प्राणिजाताच्या अहितभागीं |
संकल्पाचीही आडवंगी | न करणें जें ॥ २०३ ॥

आडवंगी=अडसर

पैं अद्रोहत्व ऐशिया गोष्टी | ऐकसी जिया किरीटी |
तें सांगितलें हें दिठी | पाहों ये तैसें ॥ २०४ ॥

आणि गंगा शंभूचा माथां | पावोनि संकोचे जेवीं पार्था |
तेवीं मान्यपणें सर्वथा | लाजणें जें ॥ २०५ ॥

तें हें पुढत पुढती | अमानित्व जाण सुमती |
मागां सांगितलेंसे किती | तेंचि तें बोलों ॥ २०६ ॥

एवं इहीं सव्विसें | ब्रह्मसंपदा हे वसत असे |
मोक्षचक्रवर्तीचें जैसें | अग्रहार होय ॥ २०७ ॥

सव्विसें=२६ वे तत्व   अग्रहार=ईमान

नाना हे संपत्ति दैवी | या गुणतीर्थांची नीच नवी |
निर्विण्णसगरांची दैवी | गंगाचि आली ॥ २०८ ॥

निर्विण्ण=निरिच्छ

कीं गणकुसुमांची माळा | हे घेऊनि मुक्तिबाळा |
वैराग्यनिरपेक्षाचा गळा | गिंवसीत असे ॥ २०९ ॥

कीं सव्विसें गुणज्योती | इहीं उजळूनि आरती |
गीता आत्मया निजपती | नीरांजना आली ॥ २१० ॥

उगळितें निर्मळें | गुण इयेंचि मुक्ताफळें |
दैवी शुक्तिकळें | गीतार्णवींची ॥ २११ ॥

उगळितें=बाहेर टाकणे

काय बहु वानूं ऐसी | अभिव्यक्ती ये अपैसी |
केलें दैवी गुणराशी | संपत्तिरूप ॥ २१२ ॥

आतां दुःखाची आंतुवट वेली | दोषकाट्यांची जरी भरली |
तरी निजाभिधानी घाली | आसुरी ते ॥ २१३ ॥

आंतुवट=आत असलेली


पैं त्याज्य त्यजावयालागीं | जाणावी जरी अनुपयोगी |
तरी ऐका ते चांगी | श्रोत्रशक्ती ॥ २१४ ॥

तरी नरकव्यथा थोरी | आणावया दोषींघोरीं |
मेळु केला ते आसुरी | संपत्ति हे ॥ २१५ ॥

नाना विषवर्गु एकवटु | तया नांव जैसा बासटु |
आसुरी संपत्ती हा खोटु | दोषांचा तैसा ॥ २१६ ॥

बासटु=काळकूट

by dr. vikrant tikone



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