ज्ञानेश्वरी
/ अध्याय अठरावा /
संत ज्ञानेश्वर
ओव्या १०९१ ते११२९
----
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काण्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ॥ ५४॥
(ब्रह्म झाला प्रसन्न आत्मा न शोक करतो न आकांक्षा
सम पाहे सर्व भुता माझी परम भक्ति लाभता )
ब्रह्मभूतः प्रसन्नात्मा न शोचति न काण्क्षति।
समः सर्वेषु भूतेषु मद्भक्तिं लभते पराम् ॥ ५४॥
(ब्रह्म झाला प्रसन्न आत्मा न शोक करतो न आकांक्षा
सम पाहे सर्व भुता माझी परम भक्ति लाभता )
ते ब्रह्मभावयोग्यता | पुरुषु तो मग पंडुसुता |
आत्मबोधप्रसन्नता\- | पदीं बैसे ॥ १०९१ ॥
जेणें निपजे रससोय | तो तापुही जैं जाय |
तैं ते कां होय | प्रसन्न जैसी ॥ १०९२ ॥
नाना भरतिया लगबगा | शरत्काळीं सांडिजे गंगा |
कां गीत रहातां उपांगा | वोहटु पडे ॥ १०९३ ॥
उपांगा=इतर साथ देणारी वाद्य वगैरे
तैसा आत्मबोधीं उद्यमु | करितां होय जो श्रमु |
तोही जेथें समु | होऊनि जाय ॥ १०९४ ॥
आत्मबोधप्रशस्ती | हे तिये दशेची ख्याती |
ते भोगितसे महामती | योग्यु तो गा ॥ १०९५ ॥
आत्मबोध प्रशस्ती=प्रसन्नता
तेव्हां आत्मत्वें शोचावें | कांहीं पावावया कामावें |
हें सरलें समभावें | भरितें तया ॥ १०९६ ॥
उदया येतां गभस्ती | नाना नक्षत्रव्यक्ती |
हारवीजती दीप्ती | आंगिका जेवीं ॥ १०९७ ॥
आंगिका=अंगाने स्वतेजाणे
तेवीं उठतिया आत्मप्रथा | हे भूतभेदव्यवस्था |
मोडीत मोडीत पार्था | वास पाहे तो ॥ १०९८ ॥
आत्मप्रथा =आत्मनुभव वास=अनुभवणे पाहणे
पाटियेवरील अक्षरें | जैसीं पुसतां येती करें |
तैसीं हारपती भेदांतरें | तयाचिये दृष्टी ॥ १०९९ ॥
तैसेनि अन्यथा ज्ञानें | जियें घेपती जागरस्वप्नें |
तियें दोन्ही केलीं लीनें | अव्यक्तामाजीं ॥ ११०० ॥
मग तेंही अव्यक्त | बोध वाढतां झिजत |
पुरलां बोधीं समस्त | बुडोनि जाय ॥ ११०१ ॥
जैसी भोजनाच्या व्यापारीं | क्षुधा जिरत जाय अवधारीं |
मग तृप्तीच्या अवसरीं | नाहींच होय ॥ ११०२ ॥
नाना चालीचिया वाढी | वाट होत जाय थोडी |
मग पातला ठायीं बुडी | देऊनि निमे ॥ ११०३ ॥
कां जागृति जंव जंव उद्दीपे | तंव तंव निद्रा हारपे |
मग जागीनलिया स्वरूपें | नाहींच होय ॥ ११०४ ॥
हें ना आपुलें पूर्णत्व भेटें | जेथ चंद्रासीं वाढी खुंटे |
तेथ शुक्लपक्षु आटे | निःशेषु जैसा ॥ ११०५ ॥
तैसा बोध्यजात गिळितु | बोधु बोधें ये मज आंतु |
मिसळला तेथ साद्यंतु | अबोधु गेला ॥ ११०६ ॥
तेव्हां कल्पांताचिये वेळे | नदी सिंधूचें पेंडवळें |
मोडूनि भरलें जळें | आब्रह्म जैसें ॥ ११०७ ॥
पेंडवळें =भिन्नता
नाना गेलिया घट मठ | आकाश ठाके एकवट |
कां जळोनि काष्ठें काष्ठ | वन्हीचि होय ॥ ११०८ ॥
नातरी लेणियांचे ठसे | आटोनि गेलिया मुसे |
नामरूप भेदें जैसें | सांडिजे सोनें ॥ ११०९ ॥
हेंही असो चेइलया | तें स्वप्न नाहीं जालया |
मग आपणचि आपणयां | उरिजे जैसें ॥ १११० ॥
तैसी मी एकवांचूनि कांहीं | तया तयाहीसकट नाहीं |
हे चौथी भक्ति पाहीं | माझी तो लाहे ॥ ११११ ॥
येर आर्तु जिज्ञासु अर्थार्थी | हे भजती जिये पंथीं |
ते तिन्ही पावोनी चौथी | म्हणिपत आहे ॥ १११२ ॥
सरूपता
येऱ्हवीं तिजी ना चौथी | हे पहिली ना सरती |
पैं माझिये सहजस्थिती | भक्ति नाम ॥ १११३ ॥
जें नेणणें माझें प्रकाशूनि | अन्यथात्वें मातें दाऊनि |
सर्वही सर्वीं भजौनि | बुझावीतसे जे ॥ १११४ ॥
नेणणें=अनाकलियत्व
अन्यथात्वें=विपरीत भाव भजौनि=भक्ति करावयास लावी
बुझावीतसे=समजूत घालणे
जो जेथ जैसें पाहों बैसे | तया तेथ तैसेंचि असे |
हें उजियेडें कां दिसे | अखंडें जेणें ॥ १११५ ॥
स्वप्नाचें दिसणें न दिसणें | जैसें आपलेनि असलेपणें |
विश्वाचें आहे नाहीं जेणें | प्रकाशें तैसें ॥ १११६ ॥
ऐसा हा सहज माझा | प्रकाशु जो कपिध्वजा |
तो भक्ति या वोजा | बोलिजे गा ॥ १११७ ॥
वोजा=योग्यता
म्हणौनि आर्ताच्या ठायीं | हे आर्ति होऊनि पाहीं |
अपेक्षणीय जें कांहीं | तें मीचि केला ॥ १११८ ॥
जिज्ञासुपुढां वीरेशा | हेचि होऊनि जिज्ञासा |
मी कां जिज्ञास्यु ऐसा | दाखविला ॥ १११९ ॥
हेंचि होऊनि अर्थना | मीचि माझ्या अर्थीं अर्जुना |
करूनि अर्थाभिधाना | आणी मातें ॥ ११२० ॥
अर्थना=उद्देश अर्थाभिधाना=अर्थ नावाला
एवं घेऊनि अज्ञानातें | माझी भक्ति जे हे वर्ते |
ते दावी मज द्रष्टयातें | दृश्य करूनि ॥ ११२१ ॥
येथें मुखचि दिसे मुखें | या बोला कांहीं न चुके |
तरी दुजेपण हें लटिकें | आरिसा करी ॥ ११२२ ॥
दिठी चंद्रचि घे साचें | परी येतुलें हें तिमिराचें |
जे एकचि असे तयाचे | दोनी दावी ॥ ११२३ ॥
तिमिराचें =तिमिर
रोग
तैसा सर्वत्र मीचि मियां | घेपतसें भक्ति इया |
परी दृश्यत्व हें वायां | अज्ञानवशें ॥ ११२४ ॥
तें अज्ञान आतां फिटलें | माझें दृष्टृत्व मज भेटलें |
निजबिंबीं एकवटलें | प्रतिबिंब जैसें ॥ ११२५ ॥
पैं जेव्हांही असे किडाळ | तेव्हांही सोनेंचि अढळ |
परी तें कीड गेलिया केवळ | उरे जैसें ॥ ११२६ ॥
हां गा पूर्णिमे आधीं कायी | चंद्रु सावयवु नाहीं ? |
परी तिये दिवशीं भेटे पाहीं | पूर्णता तया ॥ ११२७ ॥
तैसा मीचि ज्ञानद्वारें | दिसें परी हस्तांतरें |
मग दृष्टृत्व तें सरे | मियांचि मी लाभें ॥ ११२८ ॥
हस्तांतरें=इतर मदतीने
म्हणौनि दृश्यपथा- | अतीतु माझा पार्था |
भक्तियोगु चवथा | म्हणितला गा ॥ ११२९ ॥
by dr. vikrant tikone
*/ *****************************************
CASINO HOTEL CASINO HOTEL CASINO - Mapyro
ReplyDelete› hotel-casino-hotel › hotel-casino-hotel Casino Hotel in Las Vegas, NV and the place 군포 출장마사지 to stay when you're in Las Vegas is 영주 출장샵 Casino is located on the waterfront and features a casino, 당진 출장안마 a restaurant 전라북도 출장샵 Rating: 7/10 25 votes Price 경상북도 출장마사지 range: $$